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कार्तिक पूर्णिमा और चंद्र ग्रहण का आज विशेष संयोग
149 वर्षों बाद विशेष ग्रह, नक्षत्र में वर्ष का अंतिम ग्रहण
इंदौर. कार्तिक पूर्णिमा और चन्द्र ग्रहण का संयोग बन रहा है. 149 वर्षों बाद विशेष ग्रह, नक्षत्र में वर्ष का अंतिम ग्रहण है. ग्रहण का कोई धार्मिक प्रभाव नहींंं है और न सूतक लगेगा, न मन्दिर के पट बंद होंगे. स्नान, दान, पुण्य का दोहरा लाभ, रात्रि में दीपदान से लक्ष्मी की प्रसन्नता प्राप्त होगी.
यह बात भारद्वाज ज्योतिष व आध्यात्मिक शोध संस्थान के शोध निदेशक आचार्य पं. रामचंद्र शर्मा वैदिक ने कही. उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि 30 नवंबर कार्तिक पूर्णिमा के साथ वर्ष का अंतिम चंद्रग्रहण भी है. यह मांद्य (उपच्छाया )चन्द्र ग्रहण है. इस ग्रहण का हमारे यहां कोई धार्मिक प्रभाव नही होने से न सूतक लगेगा न मंदिरों के पट बंद होंगें.
कार्तिक पूर्णिमा पर चन्द्र ग्रहण के संयोग से स्नान, दान,पुण्य,जप,तप व शुभ कर्मों का अनन्त पुण्य फल प्राप्त होता है. भारतीय समयानुसार इस ग्रहण का स्पर्श दोपहर 1.03 बजे होगा, मध्य 3.13 बजे व मोक्ष शाम 5.23 बजे होगा. यह ग्रहण भारत मे कारगिल, उत्तर काशी,लैंस डाउन,बरेली, अम्बेडकर नगर, कानपुर, चित्रकूट, रीवा, श्री काकूलम इन नगरों से पूर्व के सभी नगरों में दृश्य होगा. दक्षिण,,पश्चिमी भारत मे दिखायी नहीं देगा.
शेष भारत के उत्तर पूर्वी, मध्य पूर्वी भारत मे जहां चंद्रोदय शाम 5.23 बजे से पहिले होगा वहां उपच्छाया ग्रस्तोदय रूप में दिखाई देगी. यह चौथा ग्रहण है पूर्व में 10 जनवरी, 5/6 जून,5 जुलाई व 30 नवम्बर 20 को ग्रहण हो चुके है। सोमवार को घटित हो रहे तृतीय उपच्छाया ग्रहण इंग्लैंड, आयरलैंड, नार्वे ,उत्तर स्वीडन,उत्तरी फिनलैंड, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका व प्रसांत महासागर में दृश्य होगा.
क्या है उपच्छाया चन्द्र ग्रहण
सही मायने में यह चन्द्र ग्रहण नहीं होता. चंद्रग्रहण होने से पूर्व चन्द्र पृथ्वी की उपच्छाया में प्रवेश अवश्य करता है जिसे चन्द्र मालिन्य कहा जाता है. इसके पश्चात ही वह पृथ्वी की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है. उपच्छाया चंद्रग्रहण में ग्रहण की अवधि में चंद्रमा की चांदनी में कुछ धुंधला पन आ जाता है. विज्ञान ग्रहण को खगोलीय घटना मात्र मानता है किन्तु धार्मिक व ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से ग्रहण को अशुभ ही माना जाता है जिसके व्यापक प्रभाव देखे गए है.इस ग्रहण का वृषभ राशि पर विशेष देखने को मिलेगा।इस प्रकार का ग्रहण पूर्व में शनि,राहु व केतु के साथ धनु राशि मे पड़ा था।ज्योतिर्वज्ञान कि मान्यता है कि जो दिखाई दे वह ग्रहण है.